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श्रद्धावान लभते ज्ञानम् )

(श्रद्धावान लभते ज्ञानम् )

हमारी चिर पुरातन भारतीय संस्कृति में गुरु को प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठा प्रदान की गई है ।गुरु ही व्यक्ति के अज्ञान रूपी आवरण को अपनी ज्ञान रूपी ज्योति से हटाता है ।गुरु को वैदिक काल से ही परब्रह्म का पद प्राप्त है। गुरु के ज्ञान द्वारा निर्देशित व्यक्ति को.सफलता के चरम शिखर पर दीप्तिमान होने से कोई भी शक्ति रोक नहीं सकती ।गुरु के ज्ञान के अभाव में ज्ञान का सृजन और विस्तार असंभव है। शिक्षक बच्चों को ज्ञानवान और सुसंस्कृत बनाते हैं जब बच्चा विद्यालय में शिक्षक की शरण में होता है तो शिक्षक ही उस बालक के अभिभावक होते हैं ।शिक्षक बच्चों के अंदर ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं। भारतीय संस्कृति का सूत्र है (श्रद्धावान लभते ज्ञानंम) अर्थात श्रद्धा भाव से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है। यदि विद्यार्थी के अंदर अपने गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण है तो शिक्षक उसे अपना समस्त ज्ञान प्रदान करते हैं। कबीर दास ने कहा है गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है गढी गढी काढे खोट अन्दरहाथ सहारि दे बाहर मारे चोट।। अर्थात गुरु कुम्हार और शिष्य घड़ा है जिस प्रकार कुमार यत्न से खड़े के दोष को निकालता हुआ शुगर बना देता है उसी तरह गुरु भी विद्यार्थियों के दोषों का परिमार्जन करता है

हमारे जीवन को सार्थकता प्रदान करने में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है बच्चे के जन्म के बाद विद्या अध्ययन के साथ समाज में एक गौरवशाली पहचान बनाने में गुरु का पूर्ण सहयोग और आशीर्वाद होता है। गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा यही उनके लिए पूर्ण दक्षिणा है 5 सितंबर को हम गुरु की कृपा के आगे नतमस्तक होते हुए उनको याद करते हुए शिक्षक दिवस मनाते हैं शिक्षक दिवस डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस पर उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं भारतीय संस्कृति के संवाहक प्रख्यात शिक्षाविद महान दार्शनिक एक आस्थावान हिंदू विचारक थे। सर पल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तिरुत्तनी रुझान में हुआ राधाकृष्णन ने एक ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया था राधाकृष्णन का जन्म स्थान एक पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में प्रसिद्ध रहा है राधा कृष्ण के पुरखे पहले कभी सर्वपल्ली नामक ग्राम में रहते थे राधा कृष्ण के पूर्वज चाहते थे कि उनके नाम के साथ उनके जन्म स्थल के सर्वपल्ली का नाम सदैव साथ रहे राधा कृष्णन के पिता का नाम सर्वपल्ली वीरा स्वामी था और माता का नाम की सीताम्मा था। राधा कृष्णन के पिता राजस्व विभाग में काम करते हुए अपने संयुक्त परिवार का भरण पोषण किया करती थी राधा स्वामी के चार भाई और एक बहन थीं। डॉ राधाकृष्णन संपूर्ण विश्व को एक विद्यालय मानते थे उनका मानना था की शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है

सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत सरकार ने 1954 को भारत रत्न से सम्मानित किया ।राधा कृष्ण जी ने उच्च शिक्षा प्राप्त कर 40 वर्षों तक कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में काम किया। 1948 में शिक्षा आयोग के अध्यक्ष 1 आधुनिक हिंदी शिक्षा की नी,व रखने में सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मुख्य भूमिका रही । 1949 से 1952 तक राधाकृष्णन सोवियत संघ में भारत के राजदूत रहे ।और 1952 में पहले उपराष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त किया 1952 में राधाकृष्णन देश के पहले उपराष्ट्रपति बने और 1962 में देश के दूसरे राष्ट्रपति बने

कुछ शब्द राधाकृष्णन जी के आज भी सार्थक और सशक्त हैं राधाकृष्णन नेअपने वक्तव्य में कहा है (मैं अपने लगभग समस्त वयस्क जीवन में 40 वर्ष से भी अधिक समय तक शिक्षक रहा हूं मैं विद्यार्थियों के साथ रह चुका हूं और मुझे यह देखकर गहरा आघात लगता है कि कुछ विद्यार्थी अपने विश्वविद्यालय जीवन के बहुमूल्य वर्षों को व्यर्थ गंवा देते हैं विश्वविद्यालय का जीवन अध्यापकों और विद्यार्थियों की सहकारिता पर आधारित होता है मैं आशा करता हूं कि विद्यार्थी समाज विरोधी कार्य करके अपने प्रति कुछ ऐसा ना करें । चरित्र से ही किसी राष्ट्र के प्रारब्ध का निर्माण होता है, यदि हम अपने राष्ट्र को महान बनाना चाहते हैं तो हमें बड़ी संख्या में चरित्रवान युवकों और युवतियों को प्रशिक्षित करना चाहिए ।राधाकृष्णन ने यह भी कहा कि शिक्षा का केवल ज्ञान और कौशल की दृष्टि से ही महत्व नहीं है उसका महत्व इसलिए भी है कि वह हमें दूसरों के साथ मिलजुल कर रहने में सहायता देती है । हमें ऐसे जीवन यापन की शिक्षा मिलनी चाहिए जिसमें सहकारिता और परस्पर सहायता की अपेक्षा नैतिक गुणों का अधिक महत्व हो।

जया शर्मा प्रियंवदा

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3 Comments

Gunjan Kamal

01-Mar-2024 11:09 PM

बहुत खूब

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Mohammed urooj khan

29-Feb-2024 03:55 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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Varsha_Upadhyay

28-Feb-2024 11:16 PM

, nice

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